उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़: राजस्थान के गांव से दिल्ली की सत्ता तक

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़: राजस्थान के गांव से दिल्ली की सत्ता तक
जब बात अपने देश के उन नेताओं की होती है, जो मिट्टी से जुड़े रहकर आसमान छूते हैं, तो राजस्थान के झुंझुनू जिले के छोटे से गांव किठाना का नाम ज़रूर आता है। यहीं से शुरू हुआ एक किसान पुत्र का सफर, जो आज भारत के उपराष्ट्रपति के रूप में देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद तक पहुंचा। जगदीप धनखड़ की कहानी हर उस देसी दिल को प्रेरित करती है, जो मेहनत, लगन और हिम्मत से अपने सपनों को हकीकत में बदलना चाहता है। लेकिन हाल ही में उनके अचानक इस्तीफे ने पूरे देश को चौंका दिया। आइए, उनके जीवन, राजनीतिक सफर, विवादों और जनता से जुड़ाव को गहराई से समझें और जानें कि आखिर क्यों हैं वो आज हर जगह चर्चा में।
जगदीप धनखड़ का प्रेरणादायक सफर राजस्थान के किठाना गांव से शुरू हुआ।
जगदीप धनखड़ जीवनी: मेहनत और शिक्षा का पहला कदम
18 मई 1951 को राजस्थान के झुंझुनू जिले के किठाना गांव में जन्मे जगदीप धनखड़ एक साधारण किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता गोपाल चंद और माता केसरी देवी ने उन्हें मेहनत, ईमानदारी और संस्कारों की सीख दी। बचपन में वो रोज़ 4-5 किलोमीटर पैदल चलकर गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ने जाते थे। इसके बाद उन्होंने चित्तौड़गढ़ के सैनिक स्कूल में दाखिला लिया, जहां अनुशासन और नेतृत्व की नींव पड़ी। राजस्थान विश्वविद्यालय से भौतिकी में स्नातक और फिर एलएलबी की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने वकालत की दुनिया में कदम रखा। 1979 में डॉ. सुदेश धनखड़ से उनकी शादी हुई, और उनकी बेटी कामना आज उनके परिवार की शान है।
1979 में राजस्थान बार काउंसिल में रजिस्ट्रेशन के साथ वकालत शुरू करने वाले धनखड़ ने 1990 में राजस्थान हाई कोर्ट में सीनियर एडवोकेट का दर्जा हासिल किया। वो न सिर्फ राजस्थान बल्कि सुप्रीम कोर्ट में भी अपनी वकालत के लिए मशहूर हुए। उनकी क़ानूनी समझ और तर्कशक्ति ने उन्हें जल्द ही देश के प्रतिष्ठित वकीलों में शुमार कर दिया। लेकिन उनका दिल हमेशा जनसेवा में रहा, जिसने उन्हें राजनीति की ओर मोड़ा।
राजनीतिक सफर: जनता दल से बीजेपी तक
जगदीप धनखड़ का सियासी सफर 1989 में शुरू हुआ, जब वो जनता दल के टिकट पर झुंझुनू से लोकसभा सांसद चुने गए। उस समय राजस्थान में कांग्रेस का दबदबा था, लेकिन धनखड़ ने अपनी मेहनत और जाट समुदाय के समर्थन से जीत हासिल की। चंद्रशेखर सरकार में वो संसदीय कार्य राज्यमंत्री बने और अपनी कार्यकुशलता से सबका ध्यान खींचा। लेकिन जनता दल के टूटने के बाद वो 1990 में कांग्रेस में शामिल हुए और 1991 में अजमेर से चुनाव लड़ा, हालांकि हार गए। 1993-1998 तक वो राजस्थान विधानसभा के सदस्य रहे और किशनगढ़ से विधायक चुने गए।
2003 में धनखड़ ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का दामन थामा। इस दौरान वो वसुंधरा राजे और आरएसएस के करीब आए। 2019 में उन्हें पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया, जहां उनकी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और ममता बनर्जी की सरकार से कई बार तीखी नोकझोंक हुई। विश्वविद्यालय नियुक्तियों, कानून-व्यवस्था और संघीय ढांचे पर उनके बयानों ने उन्हें सुर्खियों में रखा। 2022 में बीजेपी ने उन्हें उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया, और 6 अगस्त 2022 को हुए चुनाव में उन्होंने विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को 528 वोटों (74.37%) से हराकर शानदार जीत हासिल की। 11 अगस्त 2022 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें शपथ दिलाई।
संसद की गरिमा को बनाए रखने में धनखड़ की अहम भूमिका।
चर्चा में क्यों हैं: इस्तीफा और विवादों का तूफान
21 जुलाई 2025 को जगदीप धनखड़ ने अचानक उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया, जिसने पूरे देश को हैरान कर दिया। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लिखे पत्र में स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 67(क) के तहत इस्तीफे की घोषणा की। मार्च 2025 में उनकी एंजियोप्लास्टी हुई थी और हाल ही में नैनीताल में स्वास्थ्य कारणों से अस्पताल में भर्ती होने की खबरें थीं। लेकिन राजनीतिक गलियारों में अटकलें हैं कि उनके इस्तीफे के पीछे बीजेपी नेतृत्व के साथ तनाव और विपक्षी नेताओं से बढ़ती नजदीकियां भी कारण हो सकती हैं। खासकर, उनकी हालिया मुलाकातें कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और आप नेता अरविंद केजरीवाल के साथ चर्चा का विषय बनीं।
उनका कार्यकाल विवादों से भी भरा रहा। अप्रैल 2025 में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के ‘मौलिक संरचना सिद्धांत’ और अनुच्छेद 142 को ‘न्यायिक परमाणु मिसाइल’ कहकर तीखी बहस छेड़ दी। उन्होंने कहा कि अदालतें राष्ट्रपति या राज्यपालों को विधेयकों पर समयसीमा तय करने का आदेश नहीं दे सकतीं। इस बयान पर कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने उनकी आलोचना की और इसे न्यायपालिका पर हमला बताया। दिसंबर 2024 में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ ने उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया, जिसे उपसभापति हरिवंश ने खारिज कर दिया। इसके अलावा, टीएमसी ने उन्हें बीजेपी का ‘एजेंट’ बताकर निशाना साधा। अक्टूबर 2024 में सीबीआई और ईडी के समर्थन में उनके बयान ने भी विपक्ष को नाराज़ किया।
जनता से जुड़ाव: गांव की मिट्टी से दिल्ली की सत्ता तक
जगदीप धनखड़ की सबसे बड़ी ताकत उनकी सादगी और देसी अंदाज़ है। राजस्थान के जाट समुदाय के नेता के रूप में उन्होंने ओबीसी आरक्षण जैसे मुद्दों को जोर-शोर से उठाया, जिससे ग्रामीण भारत में उनकी लोकप्रियता बढ़ी। उनकी भाषण शैली में गांव का अपनापन झलकता है, जो शहरों के पढ़े-लिखे तबके को भी पसंद आता है। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहते हुए वो कोलकाता की सड़कों पर आम लोगों से मिलते थे, और गांवों में किसानों के बीच उनकी मौजूदगी ने उन्हें जन-नेता बनाया।
उदाहरण के लिए, जब वो पश्चिम बंगाल में थे, तो उन्होंने विश्वविद्यालयों की नियुक्तियों और कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाकर जनता का ध्यान खींचा। राजस्थान में भी वो क्रिकेट प्रेम और आध्यात्मिकता के ज़रिए युवाओं और बुजुर्गों से जुड़े। लेकिन उनके कुछ बयानों, जैसे छात्र राजनीति पर टिप्पणी और जांच एजेंसियों का समर्थन, ने शहरी और युवा वर्ग में विवाद भी खड़ा किया। फिर भी, उनकी मेहनत और जमीनी जुड़ाव ने उन्हें एक अलग पहचान दी।
प्रभाव और विरासत: एक प्रेरणा या विवादों का चेहरा?
जगदीप धनखड़ का सफर एक किसान पुत्र से उपराष्ट्रपति तक का है, जो लाखों लोगों के लिए प्रेरणा है। राजस्थान के छोटे से गांव से निकलकर उन्होंने न सिर्फ क़ानून की दुनिया में नाम कमाया, बल्कि सियासत में भी अपनी छाप छोड़ी। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है संसद की सर्वोच्चता पर जोर देना और जाट समुदाय को आरक्षण दिलाने में योगदान। लेकिन उनके विवादास्पद बयानों और विपक्ष के साथ टकराव ने उनकी छवि को ध्रुवीकृत भी किया। कुछ लोग उन्हें साहसी और सिद्धांतवादी मानते हैं, तो कुछ उन्हें बीजेपी के एजेंडे को बढ़ाने वाला नेता कहते हैं।
उनके इस्तीफे ने सवाल उठाए हैं कि क्या वो भविष्य में सक्रिय सियासत में लौटेंगे? कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि उनकी आरएसएस से नजदीकियां और जाट समुदाय में प्रभाव उन्हें राजस्थान की सियासत में बड़ा खिलाड़ी बना सकता है, खासकर 2028 के विधानसभा चुनावों में।
निष्कर्ष: एक नई शुरुआत या अंत?
जगदीप धनखड़ की कहानी मेहनत, हिम्मत और विवादों का अनोखा संगम है। एक छोटे से गांव से शुरू होकर देश के उपराष्ट्रपति बनने तक का उनका सफर हर उस इंसान को प्रेरित करता है, जो अपने सपनों को सच करना चाहता है। लेकिन उनका अचानक इस्तीफा और इसके पीछे की अटकलें सवाल उठाती हैं – क्या ये स्वास्थ्य कारणों से लिया गया फैसला था, या सियासी दांव-पेच का हिस्सा? क्या वो फिर से सियासत में नई पारी खेलेंगे? समय ही इसका जवाब देगा।
Disclaimer: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से है। कृपया नवीनतम समाचारों के लिए अधिकृत स्रोतों से पुष्टि करें।
FAQs: आपके सवाल, हमारे जवाब
1. जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा क्यों दिया?
उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया, खासकर मार्च 2025 में हुई एंजियोप्लास्टी और हालिया अस्पताल में भर्ती के बाद। लेकिन कुछ सूत्रों का कहना है कि बीजेपी नेतृत्व से तनाव और विपक्षी नेताओं से मुलाकात भी कारण हो सकती हैं।
2. जगदीप धनखड़ का राजनीतिक सफर कैसा रहा?
1989 में जनता दल से सांसद, फिर कांग्रेस और बीजेपी में शामिल हुए। वो विधायक, राज्यपाल और 2022 में उपराष्ट्रपति बने। उनका सफर उतार-चढ़ाव से भरा रहा।
3. धनखड़ के विवादों की वजह क्या थी?
उनके बयानों, खासकर संसद की सर्वोच्चता, अनुच्छेद 142 और जांच एजेंसियों पर टिप्पणियों ने विवाद खड़े किए। विपक्ष ने उन पर पक्षपात के आरोप भी लगाए।
4. क्या धनखड़ फिर से सक्रिय सियासत में लौटेंगे?
उनके इस्तीफे ने अटकलों को जन्म दिया है। उनकी आरएसएस और जाट समुदाय से नजदीकियां उन्हें राजस्थान की सियासत में वापस ला सकती हैं।
5. उपराष्ट्रपति के बाद अब कौन?
हरिवंश नारायण सिंह कार्यवाहक सभापति हैं। संविधान के अनुसार, 60 दिनों में नया उपराष्ट्रपति चुना जाएगा।
6. धनखड़ की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या थी?
वो एक किसान पुत्र से उपराष्ट्रपति बने और संसद की गरिमा को बढ़ाने के साथ जाट समुदाय को ओबीसी आरक्षण दिलाने में योगदान दिया।
7. जनता के बीच धनखड़ की लोकप्रियता कैसी थी?
उनकी देहाती शैली और किसानों से जुड़ाव ने ग्रामीण भारत में उन्हें लोकप्रिय बनाया, लेकिन शहरी और युवा वर्ग में उनके बयानों ने विवाद भी खड़े किए।
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